हिन्दी साहित्य में आधुनिक दलित विमर्श
वर्ण-व्यवस्था के खिलाफ दलित विरोधी साहित्य में आधुनिकता
Keywords:
प्रेमचंद, दलित विमर्श, सूरदास, रंगभूमि, वर्ण-व्यवस्थाAbstract
प्रेमचंद की विशेषता यह है कि वह वर्ग के आर्थिक शोषण के पक्ष को कभी अपनी नजर से ओझल नहीं होने देते। आखिर इस शोषण को बरकरार करने के लिए ही जो जात-पात, धर्म-अधर्म और ऊॅच-नीच का तामझाम तैयार किया है। प्रेमचंद ने एक अछूत जाति के पात्र को नायक बनाकर क्रांतिकारी कार्य किया, सूरदास में गांधी की छवि उतारकर और भी बड़ा काम किया और धर्म-न्याय-सत्य की लड़ाई लड़ने के कारण उसे भारत के वीर-त्यागी महापुरुषों की परंपरा से जोड़ दिया। वह अंधा है, भिखारी है, पर उसकी अंतर्दृष्टि प्रबल है। उपन्यास के सभी सवर्ण पात्रा-राजा-महाराजा, शासक, उद्योगपति आदि सभी उसके सम्मुख श्रद्धा से झुकते हैं तथा उसकी श्रेष्ठता को स्वीकार करते हैं। उपन्यास के अंत में उसका बलिदान गांधी के बलिदान से कम नहीं है। अतः ‘रंगभूमि’ तो दलित जाति के नायक को गांधी का प्रतीक बनाकर उसे समाज के शिखर पर स्थापित करती है, न कि किसी जाति का अपमान करती है। सूरदास प्रेमचंद की महान एवं कालजयी सृष्टि है और दलित जाति के लिए तो वह गौरव का केंद्र है। भारतीय समाज में व्याप्त वर्ण-व्यवस्था, जाति, अस्पृश्यता शोषण, दमन, उत्पीडन के खिलाफ संघर्ष की लंबी प्रक्रिया रही है। प्राचीन समय से लेकर आज तक अन्याय और वर्चस्व के विरूद्ध सामाजिक परिवर्तन के लिए धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलन चलते रहते हैं। समय और काल परिवेश के अपने दबावों के फलस्वरूप यह आंदोलन तीव्रता और ठहराव से गुजरते हुए नया आकार पाता रहा है। सामाजिक परिवर्तनों की प्रक्रिया को अग्रसर करते हुए तथा तमाम आयामों से गुजरते हुए दलित वर्ण-व्यवस्था के बस एक सशक्त आंदोलन और ग़़़भीर चिंतन है।Published
2021-01-01
How to Cite
[1]
“हिन्दी साहित्य में आधुनिक दलित विमर्श: वर्ण-व्यवस्था के खिलाफ दलित विरोधी साहित्य में आधुनिकता”, JASRAE, vol. 18, no. 1, pp. 219–225, Jan. 2021, Accessed: Jul. 05, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/12963
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Articles
How to Cite
[1]
“हिन्दी साहित्य में आधुनिक दलित विमर्श: वर्ण-व्यवस्था के खिलाफ दलित विरोधी साहित्य में आधुनिकता”, JASRAE, vol. 18, no. 1, pp. 219–225, Jan. 2021, Accessed: Jul. 05, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/12963