खाण्डेराय रासो -पौरुश की ऋचाओं का उदग्र काव्य-ग्रंथ

A Study of Early Hindi Rāso Poetry and its Significance

Authors

  • जय प्रकाश शर्मा
  • डॉ. विष्णु कुमार अग्रवाल

Keywords:

खाण्डेराय रासो, पौरुश, काव्य-ग्रंथ, रासो कविता, हिंदी साहित्य, आदिकाल, रासो काव्य, अर्थ, प्रमुख रासो काव्य, विशेषताएँ

Abstract

रासो के नाम से जानी जाने वाली हिंदी के प्रारंभिक रूप में लिखी गई कविता भाषा की प्रारंभिक अवस्था में है। उनमें से अधिकांश में बहादुर नायक शामिल हैं। लोकप्रिय हिंदी रासो कविता पृथ्वीराज रासो है। रासो ज्यादातर डिंगल भाषा में रचित महाकाव्य कविता से जुड़ा है, जबकि रास बरन परंपरा से जुड़ा है। इस लेख में हम हिंदी साहित्य के आदिकाल के अंतर्गत रासो काव्य के बारे में पढेंगे , इस टॉपिक में हम रासो का अर्थ ,प्रमुख रासो काव्य ग्रन्थ और रासो काव्य की विशेषताएँ पढेंगे।

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Published

2021-08-01

How to Cite

[1]
“खाण्डेराय रासो -पौरुश की ऋचाओं का उदग्र काव्य-ग्रंथ: A Study of Early Hindi Rāso Poetry and its Significance”, JASRAE, vol. 18, no. 5, pp. 368–374, Aug. 2021, Accessed: Jul. 03, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/13491

How to Cite

[1]
“खाण्डेराय रासो -पौरुश की ऋचाओं का उदग्र काव्य-ग्रंथ: A Study of Early Hindi Rāso Poetry and its Significance”, JASRAE, vol. 18, no. 5, pp. 368–374, Aug. 2021, Accessed: Jul. 03, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/13491