भारतीय समाज में दलितों का उत्थान: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण

Authors

  • डॉ. विपिन कुमार समाजशास्त्र विभाग, कॉलिज ऑफ एजूकेशन, बिलासपुर (गौतमबुद्धनगर)
  • डॉ. सत्येन्द्र सिंह एसोसिएट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, जनता वैदिक कॉलिज, बड़ौत (बागपत)

Keywords:

भारतीय समाज, दलितों, उत्थान, समाजशास्त्रीय विश्लेषण, विभाजन

Abstract

प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि मानव समाज आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित हो गया है। यह तो नहीं मालूम कि मानव समाज का विघटन कब, कैसे और क्यों हुआ, लेकिन यह निश्चित है कि इस प्रकार का विभाजन उस मानव प्रजाति के नाम पर कलंक है जो पृथ्वी पर जीवधारियों में सबसे अधिक विकसित और बुद्धिमान है, साथ ही यह विभाजन अवांछनीय, दुर्भाग्यपूर्ण और गलत भी है। यह वास्तव में दुःखद है कि एक ही प्रजाति का एक सदस्य दूसरे सदस्य को केवल इसलिए छूने को तैयार नहीं है क्योंकि उसका जन्म दूसरे कुल में हुआ है।कई समाज-सुधारकों ने अछूतोद्वार के लिये प्रयास किये हैं और उनमें कुछ सफल भी हुए हैं, लेकिन इस सफलता को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। सरकार दिन-प्रतिदिन इसके लिये नये-नये नियम बना रही है लेकिन अभी तक स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं आ पाया है। दलित वर्ग की वास्तविक और स्थायी जागरूकता के लिए उनकी संस्कृति, सामाजिक विचारधारा और स्वयं के प्रति विकासशीलता की भावना का उदय होना परमावश्यक है।

References

सिंह, वी०के० (2010)- ‘‘सोशल प्रॉब्लम्स ऑफ अनटचेबल कॉस्टस’’, नई दिल्ली, डी०पी०एस० पब्लिशिंग हाऊस, पृ॰सं॰ 17।

शिवप्रकाशम्, डॉ० एम०एन० (2002)- ‘‘दलितस एण्ड सोशल मोबिलाइजेशन”, नई दिल्ली, रजत पब्लिकेशन हाऊस, पृ॰सं॰ 9।

पासवान, सदानन्द (2011)- ‘‘दलितस एण्ड प्रैक्टिस ऑफ अनटचेबिलिटी”, नई दिल्ली, कनिक पब्लिकेशन, पृ॰सं॰ 114।

श्यामलाल (2006)- ‘‘अनटचेबल कास्टस इन इण्डिया’’, नई दिल्ली, रावत पब्लिकेशन हाऊस, पृ॰सं॰ 36।

श्रीवास्तव, डॉ० एस०एस०एल० (2001)- ‘‘दलित उत्थान’’, मेरठ, सिग्मा कम्प्यूटर्स, पृ॰सं॰ 14।

मिश्रा, प्रो० नारायण (2004)- ‘‘दलितस इन इण्डिया’’, दिल्ली, दीप एण्ड दीप पब्लिकेशन हाऊस, पृ॰सं॰ 74।

सिन्हा, राकेश के० (2010)- ‘‘गाँधी, अम्बेडकर एण्ड दलित’’, जयपुर, पृ॰सं॰ 37।

वेबस्टर, जॉन सी०बी० (1999)- ‘‘हू इज ए दलित?’’ माइकल, एस०एम०, दलितस इन मॉर्डन इण्डिया विज़िन एण्ड वैल्यूज़, नई दिल्ली, विस्तार, पृष्ठ 68-82।

शाह, घनश्याम (2001)- ‘‘दलितस आइडेन्टिटी एण्ड पॉलिटिक्स’’, नई दिल्ली, शेग, पृ॰सं॰ 103।

बेहर, एस०सी० (2002)- ‘‘रिजर्वेशन: एन इनसूफीसाइन्ट कण्डीशन फॉर सोशल ट्रान्सफोरमेशन’’, नई दिल्ली, कनसेप्ट, पृ॰सं॰ 80-82।

Downloads

Published

2023-10-01

How to Cite

[1]
“भारतीय समाज में दलितों का उत्थान: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण”, JASRAE, vol. 20, no. 4, pp. 424–426, Oct. 2023, Accessed: Jun. 29, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/14572

How to Cite

[1]
“भारतीय समाज में दलितों का उत्थान: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण”, JASRAE, vol. 20, no. 4, pp. 424–426, Oct. 2023, Accessed: Jun. 29, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/14572