संत कबीर दास के साहित्य की सामाजिक-सांस्कृतिक भूमिका
Keywords:
कबीर दास, भूमिका, सामाजिक-सांस्कृतिक, आदर्शों और सिद्धांत।Abstract
कबीर मुक्त विचारक थे। उन्होंने अपनी आजादी का इस्तेमाल अपने जीवन के आखिरी घूंट तक किया। कबीर ने अपनी रचना में जहाँ 'सती' प्रथा का विरोध किया। फिर भी उन्हें महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं था। कबीर ने हर जगह झूठी कृत्रिमता के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। वे जीवन की वास्तविकता को उच्च मूल्य देते थे। निर्धारित कर्तव्य करना और जीवन में सही मार्ग का पालन करना ही कबीर का एकमात्र उद्देश्य था। जो मनुष्य सत्य का मार्ग छोड़कर असत्य और बनावटीपन के जाल में फंस जाता है, वह जीवन में कभी भी इच्छित सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। कबीर का महत्व हर जगह महसूस किया गया। आज भी लोग अमल करने को तैयार हैं। कबीर के आदर्शों और सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में उतारें। उनका सत्य का आदर्श इसका मुख्य कारण है। कबीर के सिद्धांत हमारे जीवन में किसी भी प्रकार की कोई असफलता हमें नहीं मिलेगी। वह बेबसी से उन लोगों को देख रहा था जो सत्य के मार्ग के बारे में सोचे बिना झूठ के रास्ते पर चल रहे थे। यह मानव की प्रगति में बाधक था।
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