पंडित लखमीचन्द के सांगों में चित्रित धर्म का वास्तविक अर्थ
धर्म और धारण की मुख्यता: पंडित लखमीचन्द के सांगों का विश्लेषण
Keywords:
पंडित लखमीचन्द, सांगों, चित्रित धर्म, महत्त्वपूर्ण स्थान, संसारAbstract
भारतीय समाज में धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन में धर्म की मुख्य भूमिका है। संसार के विभिन्न भू-भागों में निवास करने वाली मानव-जाति का निश्चित रूप से कोई न कोई धर्म है। विद्वानों ने ‘धर्म’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की ‘धृ’ धातु से मन् प्रत्यय लगने से हुई है। इसका व्युत्पत्तिगत अर्थहै - धारण करना, आलम्बन देना, पालन करना। ‘धर्म’ का नाम धर्म इसलिए पड़ा है कि वह सबको धारण करता है, जीवन की रक्षा करता है। अतः जिससे धारण और पोषण करना सिद्ध होता हो, वही धर्म है।सामान्यतः धर्म शब्द का प्रयोग कत्र्तव्य गुण नियम, न्यायशील, कर्म, उदारता आदि अर्थों में लिया जाता है। धर्म एक ऐसी आधारशीला है जो मनुष्य के कर्म और व्यवहार को नैतिक बनाता है। यह मनुष्य के तन को पवित्र और मन को शान्त रखने का सामथ्र्य रखता है।Published
2018-10-01
How to Cite
[1]
“पंडित लखमीचन्द के सांगों में चित्रित धर्म का वास्तविक अर्थ: धर्म और धारण की मुख्यता: पंडित लखमीचन्द के सांगों का विश्लेषण”, JASRAE, vol. 15, no. 9, pp. 351–353, Oct. 2018, Accessed: Jul. 08, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/8859
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Articles
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[1]
“पंडित लखमीचन्द के सांगों में चित्रित धर्म का वास्तविक अर्थ: धर्म और धारण की मुख्यता: पंडित लखमीचन्द के सांगों का विश्लेषण”, JASRAE, vol. 15, no. 9, pp. 351–353, Oct. 2018, Accessed: Jul. 08, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/8859