संत रैदास की सामजिक चेतना

संत रैदास के समय की सामाजिक और धार्मिक विपरीतताओं का परिचय

Authors

  • Seema Devi

Keywords:

संत रैदास, तरफ, सामाजिक चेतना, रचनाएँ, लोक-वाणी

Abstract

कुलभूषण कवि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया । इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भूत प्रयोग रही है। जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एंव सहज संत रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एंव प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतू की तरफ है। प्राचीन काल से ही भारत में विभिन्न धर्मो तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे है।संत रैदास के समय में देश में मुस्लिम शासन था। हिन्दू पराजित जाति थी। दोनो धर्मो के कुलीन वर्ग एक दूसरे से नफरत करते थे। जहां मुल्ला अपने धर्म को श्रैष्ठ बताकर सभी को इस्लाम धर्म मनाने को मजबूर कर रहे थे। वहीं पंडित पुराहित अपने को श्रेष्ठ सिद्व कर रहे थे। इस खींचतान से समाज निरन्तर पतन की ओर बढ रहा था।

Downloads

Published

2018-10-01

How to Cite

[1]
“संत रैदास की सामजिक चेतना: संत रैदास के समय की सामाजिक और धार्मिक विपरीतताओं का परिचय”, JASRAE, vol. 15, no. 9, pp. 421–423, Oct. 2018, Accessed: Jul. 08, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/8872

How to Cite

[1]
“संत रैदास की सामजिक चेतना: संत रैदास के समय की सामाजिक और धार्मिक विपरीतताओं का परिचय”, JASRAE, vol. 15, no. 9, pp. 421–423, Oct. 2018, Accessed: Jul. 08, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/8872