पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंधों का अध्ययन

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंधों की संस्कृति: एक अध्ययन

Authors

  • Kuldeep Sharma

Keywords:

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, निबंधों, संस्कृति, व्याख्याएं, अमूर्त विवेचनाओं, राष्ट्र, व्यक्ति, कर्म, जरूरतों, स्वरूप

Abstract

संस्कृति एक जटिल पद है। संस्कृति की अधिकांश व्याख्याएं अमूर्त विवेचनाओं में सिमट जाती हैं। दरअसल संस्कृति अमूर्तन नहीं है। संस्कृति एक ठोस परिणाम देने वाली शक्ति के रूप में उभरती है। वह राष्ट्र और व्यक्ति दोनों के आचरण की निर्धारिका ताकत की तरह हमारे समक्ष प्रकट होती है। वह मनुष्य के कर्म की प्रेरणा बनती है, जिससे देश और समाज का भविष्य तय होता है। संस्कृति के प्राचीन और अधुनातन रूपों को बड़े सूत्रबद्ध तरीके से विश्लेषित करने की आवश्यकता है। इससे संस्कृति की मानव समाज की जरूरतों का खुलासा तो होगा ही है, उसके निरंतर बदलते स्वरूप पर भी प्रकाश पड़ता रहेगा। संस्कृति के लिए रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा प्रयुक्त पद ‘दृष्टि’ एक दिशा निर्धारक बन सकता है। इससे संस्कृति के मूल रूप और उसकी मूल भावना को समझने में मदद ही मिल सकती है। संस्कृति, ‘दृष्टि’ का संदर्भ पाकर एक नयी अर्थदीप्ति से आलोकित हो उठती है।

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Published

2018-11-01

How to Cite

[1]
“पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंधों का अध्ययन: पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंधों की संस्कृति: एक अध्ययन”, JASRAE, vol. 15, no. 11, pp. 651–655, Nov. 2018, Accessed: Jul. 08, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/9126

How to Cite

[1]
“पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंधों का अध्ययन: पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंधों की संस्कृति: एक अध्ययन”, JASRAE, vol. 15, no. 11, pp. 651–655, Nov. 2018, Accessed: Jul. 08, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/jasrae/article/view/9126